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बुनियादी सुविधाओं से पीछे क्यों रह जाती हैं स्लम बस्तियां?

बंदना कुमारी

पटना, बिहार

आज भी हमलोग को यहां पीने का पानी भरने के लिए सुबह सुबह नल पर लाइन लगाना पड़ता है. अगर ज़रा देर हो जाती है तो अपना नंबर आते आते पानी चला जाता है. अगर किसी दिन सुबह बिजली चली गई तो फिर पानी मिलना मुश्किल हो जाता है. सारा दिन काम छोड़कर पानी के जुगाड़ में लगे रहते हैं. पहले की अपेक्षा अभी कुछ सालों में बस्ती में विकास का काम तो हुआ है, लेकिन बिजली और पानी की समस्या स्थाई रूप से बनी हुई है." यह कहना है पटना शहर के बीच आबाद स्लम बस्ती अदालतगंज स्थित ईख कॉलोनी की रहने वाली 45 वर्षीय रेखा देवी का. रेखा के पति पटना जंक्शन पर गन्ने का जूस बेचने का काम करते हैं. वह अपने पति, दो बेटों और एक बेटी के साथ पिछले 18 साल से इस स्लम बस्ती में रह रही है. बेटे जहां गन्ने की दुकान पर पिता का हाथ बटाते हैं, वहीं रेखा बस्ती के बगल में स्थित ऑफिसर्स कॉलोनी के कुछ घरों में सहायिका के रूप में काम करती है.

बुनियादी सुविधाओं से पीछे क्यों रह जाती हैं स्लम बस्तियां?

पटना सचिवालय और पटना जंक्शन से कुछ ही दूरी पर स्थित इस स्लम बस्ती की आबादी लगभग एक हजार के आसपास है. जहां करीब 60 प्रतिशत ओबीसी और 20 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय निवास करते हैं. तीन मोहल्ले अदालतगंज, ईख कॉलोनी और ड्राइवर कॉलोनी में विभाजित इस स्लम एरिया के निवासी आज भी विभिन्न प्रकार की बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जी रहे हैं. ड्राइवर कॉलोनी की रहने वाली 19 वर्षीय स्नातक की छात्रा ख़ुशी बताती है कि "हमें पानी भरने की समस्या का सामना करना पड़ता है. जिन घरों में नल का कनेक्शन नहीं लगा हुआ है उन्हें बस्ती से बाहर जाकर सार्वजनिक नल पर पानी भरना होता है. पूरी कॉलोनी में सुबह आठ बजे से दो घंटे के लिए और फिर शाम पांच बजे दो घंटे के लिए पानी उपलब्ध होता है. यदि कभी पानी सप्लाई करने वाली मुख्य टंकी का मोटर ख़राब हो जाता है तो पूरे दिन पानी के लिए भटकना पड़ता है. ख़ुशी बताती है कि जिस दिन पानी की समस्या होती है, उस दिन वह कॉलेज नहीं जा पाती है क्योंकि उसे मां के साथ मिलकर पानी का इंतज़ाम करना होता है. जबकि लड़कों के लिए ऐसा कोई बंधन नहीं है. पानी आये या न आये, वह सुबह स्कूल, कॉलेज या खाली घूमने निकल जाते हैं. ख़ुशी के पड़ोस में रहने वाली अनामिका उसकी सहपाठी भी है. वह बताती है कि कुछ सालों पहले कॉलोनी में कंक्रीट की रोड बनने से आने जाने में आसानी तो हो गई लेकिन नाली की बेहतर व्यवस्था नहीं होने के कारण बरसात के दिनों में अक्सर उसका गंदा पानी घरों में प्रवेश कर जाता है.

वहीं 25 वर्षीय पूनम बताती हैं कि यहां घर के दरवाज़ों और गलियों में बिजली की तारें हवा में झूलती रहती हैं. जिससे करंट और चिंगारी निकलने का खतरा बना रहता है. हालांकि बिजली विभाग की ओर से प्लास्टिक से लपेटे हुए तारें लगाई गई हैं जिनके बारे में दावा किया जाता है कि यह करंट रहित हैं. लेकिन इनके लगातार हवा में झूलते रहने से किसी अनहोनी का खतरा बना रहता है. वह कहती हैं कि अब बारिश का मौसम आ गया है, ऐसे समय में करंट के ज़्यादा फैलने की आशंका बनी रहती है. पूनम कहती हैं कि इस कॉलोनी की गलियां बहुत संकरी हैं जहां बिजली की तारें झूलती रहती हैं. अक्सर यह आने जाने वालों के सर से टकराती रहती हैं. जगह की कमी होने के कारण बच्चे भी वहीं पर खेलते हैं. हर वक्त करंट लगने का डर बना रहता है. तारों का हवा में झूलने का कारण बताते हुए 35 वर्षीय अनिल बताते हैं कि यह बस्ती अधिकृत नहीं है. इसलिए यहां विभाग द्वारा बिजली की व्यवस्था तो कर दी गई है लेकिन केवल लोगों को उपलब्ध कराई गई है. हालांकि विभाग द्वारा सभी घरों में बिजली का मीटर भी लगाया गया है और उसका बिल भी वसूला जाता है. लेकिन पूरी तरह से सुविधा प्रदान नहीं की जाती है. वह बताते हैं कि कुछ जगहों पर खुली तारें भी लटकी हुई हैं, जिन्हें बस्ती वालों ने मिलकर व्यवस्थित करने का प्रयास किया है ताकि किसी को करंट न लग जाए. लेकिन गर्मी के दिनों में अक्सर उन तारों से चिंगारियां निकलती रहती हैं. जिससे आग लगने का खतरा बना रहता है.

ईख कॉलोनी की गीता देवी बताती हैं कि इस बस्ती में बने किसी भी घर की छत पक्की नहीं है. अधिकतर घरों की छत पर प्लास्टिक बिछी होती है. जो बिजली की तारों से निकलने वाली छोटी सी चिंगारी के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है. लेकिन यहां रहने वाले लोगों की मज़बूरी है कि ज़मीन उनकी अपनी नहीं होने के कारण वह पक्की छत नहीं बना सकते हैं. अक्सर मई-जून के महीनों में तेज़ गर्मी के समय यहां आग लगने का बहुत खतरा बना रहता है. वह कहती हैं कि बिजली विभाग को समय पर बिल अदा करने के बावजूद तारों को व्यवस्थित करने की कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती है. गीता देवी बताती हैं कि बस्ती के बगल से ही ऑफिसर्स कॉलोनी शुरू हो जाती है. जहां 24 घंटे बिजली की सप्लाई रहती है. लेकिन अदालतगंज के किसी भी कॉलोनी में यह सुविधा नहीं मिलती है. छोटी फॉल्ट पर भी यहां घंटों लाइट कटी रहती है. इससे कॉलोनी के बच्चों को पढ़ने में काफी परेशानी होती है. वह सवाल करती हैं कि जब हमसे बिजली बिल लिया जाता है और समय पर बिल नहीं भरने पर उसे काट दिया जाता है तो फिर 24 घंटे सप्लाई क्यों नहीं दी जाती है? आखिर इस स्लम बस्ती के लोगों को भी बुनियादी सुविधाएं प्राप्त करने का अधिकार है. जो उन्हें मिलनी चाहिए.

बस्ती की 18 वर्षीय रेशमा कहती है कि "हमारे बस्ती की स्थिति बहुत दयनीय है. जहां तहां कूड़ा फैला रहता है. जो सड़क और नाली में बहता है. जिससे निकलने वाली दुर्गंध से लोग परेशान रहते हैं. इससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है. प्रतिदिन कचरा गाड़ी के नहीं आने के कारण अक्सर लोग अपने घर का कूड़ा बाहर फेंक देते हैं. केवल रास्ता पक्का बना देने से विकास नहीं हो जाता है. हमें भी बुनियादी सुविधाओं को पाने का अधिकार है." सामाजिक कार्यकर्ता सिद्धनाथ बताते हैं कि अदालतगंज पटना के कुछ बड़े स्लम बस्तियों में माना जाता है. इस तरह अकेले पटना शहर में करीब 177 स्लम बस्तियां है. यह सभी पटना नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. यहां बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराना नगर निगम का काम है. वह बताते हैं कि जब से देश में स्वच्छता सर्वेक्षण शुरू किया गया है, तब से यहां की स्लम बस्तियों की स्थिति में काफी सुधार आया है. सड़कें पक्की बनाई गई हैं और अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई है. लेकिन बिजली के अव्यवस्थित रूप के कारण दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. वह बताते हैं कि साल 2022 में बिजली के शार्ट सर्किट के कारण ईख कॉलोनी में भयंकर रूप से आग लग चुकी है. हालांकि समय रहते लोगों की जान तो बचा ली गई लेकिन बड़ी संख्या में घर जल गए थे. अनधिकृत कॉलोनी होने के कारण लोगों को सरकार की ओर से कोई मुआवज़ा भी नहीं मिला.

हमारे देश की एक बड़ी आबादी आज भी ऐसी है जो शहरों और महानगरों में आबाद तो है, लेकिन वहां शहर के अन्य इलाकों की तरह सभी प्रकार की सुविधाओं का अभाव होता है. शहरी क्षेत्रों में ऐसे इलाके स्लम बस्ती कहलाते हैं. इन बस्तियों में अधिकतर आर्थिक रूप से बेहद कमजोर तबका निवास करता है. जो रोजी रोटी की तलाश में गाँव से निकल कर शहर की ओर पलायन करता है. इनमें रहने वाले ज्यादातर परिवार दैनिक मजदूरी के रूप में जीवन यापन करता है. सरकार और स्थानीय प्रशासन इन क्षेत्रों के विकास के लिए कई योजनाएं संचालित कर रही हैं. ऐसे में प्रयास किया जाना चाहिए कि इन योजनाओं के माध्यम से स्लम बस्तियों में रहने वाले लोगों की समस्याओं का स्थाई समाधान निकल सके ताकि उन्हें भी विकास से जुड़ी सुविधाओं का 

समुचित लाभ भी प्राप्त हो. (चरखा फीचर)

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