नई दिल्ली मीडिया के रचनात्मक उपयोग के माध्यम से वंचित ग्रामीण समुदायों के सामाजिक और आर्थिक समावेशन की दिशा में काम करने वाली गैर-लाभकारी संगठन चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क ने "संजॉय घोष ग्रासरूट्स लीडरशिप अवार्ड्स 2024" के विजेताओं की घोषणा कर दी है. इस वर्ष तीन विजेताओं क्रमशः हिरा शर्मा, शबनम शेख और रामघनी मेघवंशी को दिया जाएगा. इन विजेताओं का चयन तीन सदस्यों की एक स्वतंत्र जूरी द्वारा किया गया है. इस अवार्ड्स के लिए देश भर से कुल 144 आवेदन प्राप्त हुए थे.
यह अवार्ड्स ग्रामीण क्षेत्रों में ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे उन युवा लीडर्स को प्रदान किया जा रहा है जिन्होंने देश के दूरदराज के इलाकों में समुदायों को संगठित करने और उनमें अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का काम कर रहे हैं. राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर की रहने वाली हिरा शर्मा वर्तमान में उर्मूल सेतु संस्थान में सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही हैं. वह मुख्य रूप से किशोर लड़के-लड़कियों के साथ मिलकर गांव में विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फ़ैलाने का काम करती हैं. वह लूणकरणसर और उसके आसपास के गांवों में बाल विवाह और बाल मजदूरी को ख़त्म करने, स्कूल में बच्चों विशेषकर लड़कियों के ड्रॉप आउट को कम से कम करने और लैंगिक भेदभाव को मिटाने जैसे गंभीर विषयों पर सक्रियता से काम कर रही हैं.
वहीं शिवाजी नगर, मुंबई की रहने वाली 22 वर्षीय शबनम मुहम्मद उमर शेख एक फुटबॉल कोच हैं और परचम पब्लिक ट्रस्ट फुटबॉल, मुंबई से जुड़ी हुई हैं. वह वंचित समुदाय के बच्चों को फुटबॉल सिखाने का काम करती हैं. इनमें कई लड़कियां हैं जिन्होंने शबनम से प्रेरित होकर फुटबॉल की प्रैक्टिस करनी शुरू की है. एक फुटबॉल कोच बनने तक शबनम को कई बाधाओं और मुश्किलों से गुज़रना पड़ा. वह जिस समुदाय से आती हैं वहां लड़कियों के लिए लड़कों जैसे कपड़े पहनने की इजाज़त नहीं थी. ऐसे में फुटबॉल की प्रैक्टिस करना उनके लिए बहुत मुश्किल चुनौती थी. लेकिन शबनम ने हिम्मत नहीं हारी और अंततः आज वह अपने क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं. उनके हौसले ने आसपास की कई लड़कियों के सपनों को पंख दिया है. शबनम की सफलता के बाद बहुत से अभिभावकों की लड़कियों के प्रति अपनी सोच भी बदली है.
अजमेर की रहने वाली 27 वर्षीय रामघनी मेघवंशी वर्तमान में महिला जन अधिकार समिति, अजमेर में शिक्षा प्रोग्राम में सेंटर प्रभारी के रूप में काम कर रही हैं. वह एक ऐसे ग्रामीण इलाके से आती हैं जहां शिक्षा का स्तर बहुत कम है. ऐसे में बालिका शिक्षा का स्तर क्या होगा? इसका सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है. पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बनने का ख्वाब देखने वाली रामघनी के सामने कई चुनौतियां थीं. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बी.एससी. नर्सिंग की डिग्री प्राप्त की. शादी के बाद भी स्वावलंबन बनने के अपने ख्वाब को उन्होंने पूरा करके दिखाया. शादी के बाद वह परिवार की पहली ऐसी लड़की बनी जिसने अपने करियर को प्राथमिकता दी. वह आज अपने गांव में किशोरियों की रोल मॉडल बन चुकी हैं. शिक्षा प्रोग्राम में सेंटर प्रभारी के रूप में रामघनी लगातार इस प्रयास है कि लड़कियां भी शिक्षा और डिजिटल माध्यमों से अपनी पहचान बना सकें.
पुरस्कार के संबंध में विस्तार से जानकारी देते हुए चरखा की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) चेतना वर्मा ने बताया कि "इस वर्ष, चरखा अपने संस्थापक संजॉय घोष के दृष्टिकोण से प्रेरित होकर जमीनी स्तर की उन लीडर को सम्मानित कर अपनी 30वीं वर्षगांठ मना रहा है, जिन्होंने सामाजिक स्तर पर नेतृत्व को मजबूत करने के लिए काम किया है. इन विजेताओं का चयन विशेषज्ञों के एक स्वतंत्र पैनल द्वारा किया गया है. जिसमें आशुतोष तोसारिया, जिनका काम किशोरियों और युवाओं के लिए सीखने और विकास के अवसरों को उत्प्रेरित करने पर केंद्रित है.
वहीं दितीलेखा जो एक क्वीर ट्रांसमास्कुलिन शोधकर्ता और लेखक हैं, जिनके पास जमीनी स्तर पर काम करने का 15 से अधिक वर्षों का अनुभव है. अनुदान प्रबंधन, शोध, और कार्यक्रम प्रशासन के विविध अनुभव के साथ, दिती लिंग, यौनिकता, नागरिकता, राष्ट्रवाद और शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर काम करने के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं और मांझी संस्था की सह संस्थापक कशिना करीम, जिन्होंने यौन हिंसा और दुर्व्यवहार, मानव तस्करी के पीड़ितों तथा उनके पुनर्वास के लिए जिम्मेदार विभिन्न हितधारकों के साथ काम किया है, शामिल थीं." उन्होंने बताया कि प्रत्येक पुरस्कार में एक प्रशस्ति पत्र और 25,000 रुपये का नकद शामिल है. सभी विजेताओं को आगामी 07 दिसंबर, 2024 को नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्स में आयोजित चरखा के 30वें स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि द्वारा सम्मानित किया जायेगा.
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